स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥ हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥ सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा https://hindubhajan.in/